भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।
अतिरथी मुझको बनाती सारथी तुमको प्रभो।।ध्रु.।।

बद्ध को है मुक्त करती, मुक्त को है बाँधती।
भक्ति तुमको भी प्रभो परतंत्रता में डालती।
द्यूतक्रीडा में हराती पार्वती तुमको प्रभो।
भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।।१।।

अश्व अर्जुन के प्रभो निर्लज्ज होकर हाँकते।
पत्तलें जूठी उठाना भी प्रभो तुम जानते।
द्रौपदी अधिकार से फटकारती तुमको प्रभो।
भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।।२।।

छीन आकृति भक्त की साकारती भगवान को।
‘जीव हूँ’ यह भाव हरकर शिव बनाती ‘ज्ञान’ को।
‘ज्ञान’ किस विधि से करे अब आरती तुमको प्रभो।
भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।।३।।

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